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Tuesday 4 June 2013

जगजीत सिंह

 होठों से छूकर भारतीय उपमहाद्वीप के लोग उन्हें आधुनिक युग की ग़ज़ल सबसे बेहतरीन गायक और एक तरह ग़ज़ल को दुबारा ज़िंदगी देनेवाला मानते हैं। जगजीत सिंह को ‘ग़ज़ल सम्राट’ कहा गया, ‘ग़ज़ल का बादशाह’ कहा गया। और जगजीत भी ग़ज़लकारों के पैरोकार की तरह ग़ज़ल को आगे लेकर बढ़ते रहे, उसे नए-नए रूप में ढालते रहे, उसे अनोखे अंदाज़ बख़्शते रहे, उसमें आधुनिक संगीत साज़ों का मिठास भरते रहे, और नई पीढ़ियों को लगातार ग़ज़ल से जोड़ते रहे, उन्हें ग़ज़ल की समझ देते रहे।
8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्री गंगानगर में एक सिख परिवार में पैदा हुए जगजीत सिंह ने पढ़ाई राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में हुई थी।
संगीत से वे बचपन से ही जुड़ गए थे और पंडित छगनलाल शर्मा से गंगानगर में ही संगीत की शिक्षा ली। बाद में उन्होंने सैनिया घराना के उस्ताद जमाल खान से हिंदुस्तानी शास्तीय संगीत शिक्षा ली और ख़याल, ठुमरी और धुपद भी सीखा।
जगजीत सिंह ने हिंदी, उर्दू, गुजराती, नेपाली, सिंधी, बांग्ला जैसी कई भाषाओं में सैकड़ों गीत और ग़ज़लें गाईं, भजन गाए और नज़्में गाईं।
जगजीत सिंह उस दौर में संगीत की दुनिया में आए जब ग़ज़लों पर पाकिस्तानी गायकों का साम्राज्य था। लेकिन जब जगजीत सिंह ने ग़ज़लों की दुनिया में आए तो सबको पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ गए।

उन्होंने ग़ज़ल की विधा को आधुनिक स्वरूप दिया और युवा पीढ़ी को उसकी ओर आकर्षित किया। उन्होंने ग़ज़ल की पारम्पतिक छवि को नया स्वरूप देने के लिए आधुनिक तकनीक का खूब इस्तेमाल किया और उन्होंने पश्चिमी संगीत वाद्यों का भी ग़ज़ल में इस्तेमाल किया, लेकिन सीमा नहीं लांघी। उन्होंने ग़ज़ल में आम-फहम शब्दों का इस्तेमाल किया और आम लोगों के दिलों को छू लिया।
जगजीत सिंह पहले भारतीय संगीतकार थे जिन्होंने अपने अलबम ‘बियॉन्ड टाइम’ के लिए पहली बार मल्टीट्रैक रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल किया।
फिल्मों में बहुत कम गाया, लेकिन जितना भी गाया लाजवाब और यादगार गाया। ‘साथ साथ’, ‘अर्थ’ और ‘प्रेम गीत’ की ग़ज़लें आज भी याद की जाती हैं।
जगजीत ने ग़ज़लों लोकप्रिय बनाने के लिए बहुत मेहनत की और हर विधा से उसका प्रचार किया। उन्होंने अपने ग़ज़लों के प्रचार के लिए और युवाओं मे ग़ज़ल का शौक परवान चढ़ाने के लिए ग़ज़लों के वीडियो तक बनाए।
उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब, मीर, फिराक गोरखपुरी की ग़ज़लों को अपनी आवाज़ की मिठास से श्रद्धांजलि अर्पित की तो कतील शिफाई, निदा फाज़ली, गुलज़ार, जावेद अख़्तर, सुदर्शन फाकिर जैसे इस ज़माने के गीतकारों के लफ्ज़ों को भी नए आयाम दिए।
उन्होंने बरसों तक अपनी पत्नी चित्र सिंह के साथ मिलकर ग़ज़लें गाईं, लेकिन एक जब 1990 में उनके एकलौते बेटे विवेक की मौत हो गई तो चित्र ने गाना बंद कर दिया।
जगजीत सिंह ने लता मंगेशकर के ‘सज्दा’ अलबम बनाकर भी एक इतिहास रचा।
उन्होंने एक संगीतकार के रूप में भी कई उपलब्धियां हासिल कीं।
जब गुलज़ार ने ‘मिर्ज़ा गालिब’ टीवी सीरियल बनाया तो जगजीत ने उसका संगीत दिया और ग़ज़लें भी गाईं।
जगजीत सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की कविताओं को भी गाया और ‘नई दिशा’ और ‘सम्वेदना’ नामक अलबम निकाले।
उन्हें सन 2003 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
यह बहुत ही दुखद है कि जिस दिन जगजीत सिंह पाकिस्तानी ग़ज़ल गायक गुलाम अली के साथ एक साझा कार्यक्रम देनेवाले थे, उसी दिन उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया।
उन्होंने संगीत करियर में लगभग 80 अलबम बनाए।
जगजीत सिंह को संसद भवन में गाना का सौभाग्य भी मिला। 10 मई 2007 को 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं वर्षगांठ पर उन्होंने बहादुर शाह ज़फर की ग़ज़ल ‘लगता नहीं दिल मेरा उजड़े दयारे में’ गाकर इतिहास रचा।( बडगुजर धर्मवीर सिंह )

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